The power of the masses | जनशक्ति को सिहंनी




जनशक्ति को सिहंनी कहा जा सकता है
                    

युग समस्याओं के समाधान में मूर्धन्यों को आगे आना चाहिए।
क्योंकि यह विनाश-उत्पादन
उन्हीं के द्वारा हुआ है।
अस्तु, प्रायश्चित भी उन्हीं को करना चाहिए था
और खोदी हुई खाई को पाटने में
अपनी भलमनसाहत का परिचय देना चाहिए था
पर वैसा कुछ करते दीखता नहीं ।
लगता है उन्होंने अपने द्वार ही नहीं कान भी बंद कर लिए हैं
और अपनी उपेक्षा एवं असमर्थता को
एक प्रकार से स्पष्ट ही कर दिया है ।

नवजागरण का द्वार-द्वार पर अलख जगाते हुए
जन-जन से कहा जाता है -मानवी गरिमा को,
मानवी निर्धारणों को छोटी सभी अदालतों ने हरा दिया है।
उसे न्याय और आश्वासन दिला सकने में
अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी है।
अब जनता की अदालत ही सुप्रीम कोर्ट
की तरह शेष बच रही है।
वही चाहे तो मानवी अस्तित्व और विश्व के संरक्षण में अपनी भूमिका निभा सकती है।

सिंहनी के छह थनों से छह बच्चे एक साथ दूध पीते देखे गए हैं ।
ऐसी दशा में लगता है कि वह बेचारी निचुड़ गई है ।
अब किसी पराक्रम के योग्य नहीं` रहीं,
फिर भी देखा जाता है कि
वह छेड़खानी करने वालों पर टूट पडऩे की स्थिति में भी बची रहती है।
बच्चों को दूध पिलाने से
वह इतनी असमर्थ नहीं हो जाती कि आखेट न कर सके।
जनशक्ति को सिहंनी कहा जा सकता है ।

वह शासन को, धर्मतंत्र को, श्रीमंतों को, साहित्य, मनीषियों को, कलाकारों को ही नहीं, दस्यु-तस्करों तक की उदरपूर्ति करती है ।
कुरीतियाँ, अवांछनीयताएँ, दुर्व्यसनों, कुप्रचलनों के जोंक, कनखजूरे
उसे अलग से चूसते रहते हैं।
इस पर भी यह नहीं समझा जाना चाहिए कि
उसकी सामर्थ्य चूक गई है ।
जो बचा है, वह ही इतना है कि इतने भर से भी दुष्प्रवृत्तियों का निराकरण और सत्प्रवृत्तियों का परिपोषण संभव हो सके।

मनुष्यत्व के ज्ञाता जानते हैं कि
जनता का महादैत्य कितना विशाल, कितना सबल और कितना समर्थ हैं ।
उसकी अकूत क्षमता का कोई लेखा-जोखा नहीं लिया जा सकता ।
विभीषिकाओं के उन्मूलन और उज्ज्वल भविष्य के निर्धारण में
अब उसी का दरवाजा खटखटाने का,
उसी देहरी पर धरना देने का प्रज्ञा अभियान ने निश्चय किया है
और घोषित किया है कि युग परिवर्तन की महायोजना
को पूरी करने के लिए जो कुछ आवश्यक है
उसे इसी कल्पवृक्ष की आराधना करके उपलब्ध किया जायगा।

-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम- 66 (3.68)



The power of the masses

The leading and able members of society should come forward to help resolve the problems world is facing today. It is actually them who have made this mess in the first place. Therefore, they should and must put it right. They should show their magnanimity by refilling the hole they have dug up.  However, they don’t seem to be doing so. It seems that they neither want to help nor even wish to hear anything about it. They have clearly shown their apathy and attitude of incapability as if they can do nothing about it.

When we go to each and every household to raise public awareness (about the crucial period of change we are going through now), we have to let people know that all the lower courts of law (i.e. institutions, organizations, administrations, etc. which have power to do something) have failed to deliver justice to humankind, its glory and resolves. They are unable to give it a fair treatment or even some consolation. The Supreme Court, i.e. the public itself is now the only glimmer of hope. Only they can do something about the survival of humanity and safeguarding the future of the world. 

A lioness may be seen nursing many cubs. It may look as if her vitality is getting drained away and she might not remain strong enough to do anything worthwhile but in reality, she would fiercely defend herself against anyone who dares to disturb her. Nursing so many cubs doesn’t make her so weak that she can’t even hunt or defend. People’s power can be likened to a lioness. It feeds (i.e. provides the means of survival to) government administration, the institution of religion, rich people, literature field, intellectuals, artists and, even robbers and criminals. Corruptions and undesirable elements of all kinds have also been eating into it. However, none should ever think that the people’s power has lost its strength. It is still strong enough to be able to resolve unworthy tendency prevailing in society and nurture the worthy ones.

The scholars of humanity truly understand the sheer size, strength and capability of people’s power. It is impossible to speculate its infinite capability. Gayatri Pariwar’s Pragya Abhiyan movement has resolved to seek the help of people’s power to deal with worldwide calamities and to establish a bright future for all. It has made it known that they will go to the masses for whatever helps and resources it needs to realize its mega-plan of the change of the era. The masses being like a wish tree would definitely grant it anything that is asked for.

Pandit Shriram Sharma Acharya
Pandit Shriram Sharma Acharya,  “ Yug Nirman Yojna - Philosophy, format and program” Chapter 66 p. (3.68)

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